Tuesday, December 22, 2009

तुम...

क्या मै लिख पाउँगा तुम पर ??
मै तुम्हे लिखूंगा कैसे ??
किससे तुलना करूँगा तुम्हारी ??

तुम्हारी वो बांते.........
तुम्हारी वो हंसी ......
तुम्हारा वो चेहरा ......

उफ़... तुम्हारी वो आँखे ........

हाँ, शायद, मै आज भी कुछ नहीं लिख पाउँगा ........................

तो क्या कभी लिख पाउँगा तुम पर ????

Saturday, December 19, 2009

ख़ामोशी

हर तरफ शोर, उफ़ ये इतना शोर !
हर भाषा हर जगह का अपना अलग शोर।

इतनी उलझन मेरे कानो में जा रही है,
मुझे बेचैन और पागल बना रही है।

मै इन सभी भाषाओँ से दूर रहना चाहता हूँ.....
मै कुछ नहीं सुनना चाहता सिवाए ,
अपनी आती जाती सांसों के

मुझे कुछ जानना है और ही कुछ पढना है सिवाए,
ख़ामोशी के।

अंततः सूरज डूबता है...........
जैसे किसी लम्बी और उबाऊ किताब का...
आखिरी पन्ना ख़तम होता है

अब जा के मेरी खवाइश पूरी होती है
जो और कुछ नहीं ख़ामोशी है

लोग अब अपने अपने घरों में सोते है ...
पर मै शायद अभी थका नहीं हूँ

सोचता हु खुद को तो ये अहसास होता है की जैसे.....
समुद्र में कोई खाली नावं खो सी गयी है।

मै और कुछ नहीं पर अकेला हूँ..........